कैसी होती है जीवन के बाद की दुनिया[1]Life After Death[1]
- vb0352
- Jan 23, 2023
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Updated: Jan 26, 2023
डा.विजय भास्कर
मौत के मुंह से निकल आने जैसे मुहावरे की उत्पत्ति के बारे में भाषाविद् शायद बेहतर तरीके से बता सकते हैं, पर वैज्ञानिकों के पास भी ऐसे काफी आंकड़े हैं, जो वैसी दुनिया के बारे में बताते हैं, जो मौत के बाद नसीब होती है। नियर डेथ एक्सपीरिएंस (एनडीई) या निकट मृत्यु अनुभव बताने वालों को एनडीयर्स कहा जाता है। ऐसे कई एनडीयर्स ने ऐसी चैंकाने वाली बातें बताई हैं, जो एक पारलौकिक दुनिया का संकेत देती हैं। अब ये अनुभव एप्पल पॉडकास्ट और स्पोटीफाइ जैसे एप्प पर भी उपलब्ध हैं। विज्ञान और टेक्नोलॉजी की दुनिया अब पहले से ज्यादा उदार हो गई है और परामनोविज्ञान, पारलौकिक दुनिया, पुनर्जन्म, आत्मा, परकाया प्रवेश जैसी बातों को आज के वैज्ञानिक सुनते भी हैं और गुनते भी हैं। किसी भी घटना को अवैज्ञानिक कहकर उसे किनारे कर देना एक तरह का वैज्ञानिक कट्टरवाद है। कट्टरवाद चाहे जहां भी हो, वह अविश्वास और अनिश्चय का माहौल बनाने में मदद करता है। इसलिए वैज्ञानिक ऐसी बातों को सुनकर कोशिश करते हैं कि उसे किस तरह वैज्ञानिक रूप से परिभाषित किया जाए या किन वैज्ञानिक आधारों पर उसे नकार दिया जाए।
चेतना की जड़ें केवल कोशिकाओंऔर अणुओं तक ही सीमित नहीं होतीं
Roots of consciousness expand beyond the realm of cells and molecules
सुनने में यह कहानी लगती है, लेकिन इसका प्रकाशित विवरण चैंकाता है। एक व्यक्ति बिल्कुल अचेत अवस्था में वाशिंगटन के एक अस्पताल लाया गया। डॉक्टरों ने उसे कृत्रिम सांस देने की प्रक्रिया शुरू की। इसी बीच एक नर्स ने देखा कि वह व्यक्ति नकली दांत लगाए हुए है। नर्स ने नकली दांत निकाल दिए। फिर एक ट्यूब मुंह से होते हुए गले तक उतारा गया। व्यक्ति को गहन चिकित्सा इकाई में ले जाया गया। वहां उसका इलाज हुआ और वह चंगा भी हो गया। एक हफ्ता बीतने पर जब वह अस्पताल आया तो उसने उस नर्स को तुरंत पहचान लिया, जिसने उसके कृत्रिम दांत निकाले थे। नर्स बेचारी चकित रह गई, क्योंकि वह व्यक्ति तब गहरे कोमा में था, जब उसे अस्पताल लाया गया था, पर उस व्यक्ति ने सारा वर्णन कुछ इस तरह सुनाया जैसे वह प्रत्यक्ष सब कुछ देख चुका हो। उसने नर्स को बताया कि वह सब कुछ ऊपर से देख रहा था, उसे अस्पताल के जिस बेड पर रखा गया था उससे वह ऊपर उठकर ‘अपने’ साथ होता हुआ सब कुछ देख रहा था। एक मनोरंजक गल्प कथा, बिल्कुल किसी सांध्य दैनिक में प्रकाशित हो सकने वाली सनसनीखेज-सी खबर जैसी।
इस व्यक्ति से संबंधित यह विवरण ब्रिटेन के मेडिकल कर्नल लैंसेट में प्रकाशित हुआ है। लैसेंट पूरी दुनिया में मानक मेडिकल जर्नल है। इसमें चिकित्सा जगत के सर्वश्रेष्ठ शोधों और आलेखों को अंकवार समेटा जाता है। लैसेंट का यह विवरण अमेरिकी अखबारों ने प्रमुखता से छापा।
निकट मृत्यु अनुभव अब तक सामान्य गतिविधियों में नहीं आया था- विज्ञान इसे ‘अछूत’ सा मानता था। नया अध्ययन हालैंड के वैज्ञानिकों के हवाले से प्रकाशित हुआ है। उन्होंने थोड़ा नयापन लाते हुए नए ढंग से इस विषय को प्रस्तुत किया है। अब तक ऐसे लोगों के अनुभव को ही रेकॉर्ड किया गया था, जो मौत के मुंह से लौट आए थे। इनका साक्षात्कार लेने के बदले इन वैज्ञानिकों ने वैसे लोगों से साक्षात्कार लेना शुरू किया, जिनकी हृदय गति रुकने के कारण क्लिनिकल मृत्यु हो गई थी। इनमें से 18 प्रतिशत मरीजों ने क्लिनिकल मृत्यु की अवधि में क्या कुछ हुआ, उसे बता दिया। 18 से 12 प्रतिशत ने निकट मृत्यु अनुभव सुनाए।
लैसेंट में प्रकाशित अनुसंधान पत्र में वैज्ञानिकों ने कहा है कि इस बात के अब पर्याप्त साक्ष्य हैं कि निकट मृत्यु अनुभव का अस्तित्व है। आलेख में वैज्ञानिकों से अनुरोध किया गया है कि वे इस आत्यंतिक चिकित्सा रहस्य-मानव चेतना की प्रकृति और स्वरूप के सिद्धांतों के बारे में फिर से विचार करें। अनुसंधान पत्र के मुख्य वैज्ञानिक, हृदय रोग विशेषज्ञ पिप वैन लोमेल ने कहा कि यह नज़रिया अनुसंधान करने वालों को बदलना होगा कि चेतना की जड़ें केवल कोशिकाओंऔर अणुओं तक ही सीमित हैं।
इस आलेख के साथ ही एनोमैलिस्टिक साइकोलॉजी रिसर्च यूनिट के निदेशक क्रिस्टोफर फ्रेंच का भी आलेख शामिल किया गया है। इस आलेख में क्रिस्टोफर फ्रेंच ने कहा है कि एक बार साक्षात्कार रेकॉर्ड करने के बाद फॉलो अप के लिए जब दोबारा एनडीयर्स का साक्षात्कार लिया गया, तब उनमें से कई लोगों ने कहा कि उन्होंने ऐसा कोई इंटरव्यू नहीं दिया था। इसके उलट कुछ लोगों ने बाद में बताया कि उन्हें कई अनुभव हुए, जबकि पहले दौर में ऐसा कोई अनुभव होने से उन्होंने इनकार कर दिया था। डॉ. फ्रेंच का यह आलेख पूरक आलेख के रूप में ही है। मुख्य आलेख डच वैज्ञानिकों का ही है। डा. फ्रेंच का कहना है कि यह उलट फेर असत्य याददाश्त या फाल्स मेमोरी के कारण हो सकता है।

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