कैसी होती है जीवन के बाद की दुनिया[2]Life After Death[2]
- vb0352
- Jan 23, 2023
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Updated: Jan 26, 2023

पारलौकिक दुनिया की पूरी झलक मिलती है इन अनुभवों से
These experiences give a complete glimpse of the transcendental world
निकट मृत्यु पर पहले भी इस काफी शोध हुए है। इनमें अग्रणी रहे हैं डॉ. रेमंड ए. मूडी। डॉ. रेमंड ने 26 साल पहले निकट मृत्यु प्रक्रिया के बारे में एक पुस्तक लिखी थी लाइफ ऑफ्टर लाइफ और स्वाभाविक रूप से विज्ञान जगत में इसकी जमकर आलोचना भी हुई थी। लगभग 12 साल बाद डॉ. रेमंड ने अपने एक सहयोगी लेखक पेरी के साथ न्यू एज जर्नल में अपनी कई आलोचनाओं का उत्तर दिया। डॉ. रेमंड ने जवाब वाले आलेख में ये रोचक पंक्तियां लिखी हैं। क्या होता है, जब व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है ? शायद मानव प्रजाति के लिए सबसे उलझाने वाला सवाल है। क्या हम अचानक इस दुनिया में अपना अस्तित्व त्याग देते हैं और रह जाती है केवल भौतिक काया, जो इस धरती पर हमारे रहने के साक्ष्य के रूप में होती है। क्या इस मौत के बाद हमें दोबारा तभी जिंदगी मिलती है, जब हमारे खाते में नेक काम ही मौजूद हों ? या फिर हम किसी जंतु के रूप में जन्म लेते हैं जैसा कि हिन्दू शास्त्रों में वर्णन है या फिर हमारा जन्म पीढि़यों बाद होता है और यह सब करने-धरने वाली क्या कोई परा शक्ति है।
डा. रेमंड का कहना है कि इन मूलभूत सवालों से हम आज भी उतनी ही दूर हैं, जितना आज से हजार वर्ष पहले थे। लेकिन इस बीच साधारण और अतिसाधारण लोगों ने ऐसे निकट मृत्यु अनुभव सुनाए हैं कि इस रहस्यमय और पारलौकिक दुनिया की एक पूरी झलक मिलती है और ऐसा लगता है कि हमने कुछ सफर तो तय किया ही है। कैसी है यह दुनिया ?
डा. रेमंड का कहना है कि लाइफ आफ्टर लाइफ पुस्तक के बाद मैं कई तीखी आलोचनाओं का जवाब नहीं दे पाया था। सवाल काफी तीखे थे। जैसे मेरे अध्ययन को क्यों वैज्ञानिक या प्रामाणिक माना जाए। कई डॉक्टरों ने यह दावा किया कि उनके लंबे चिकित्सा अनुभव में ऐसा कुछ भी नहीं मिला, जिसे निकट मृत्यु या नियर हेड एक्सीपीरियंस (एनडीई) कहा जा सके। कई डॉक्टरों का दावा था कि यह स्क्रिजोफ्रेनिया या उस जैसी बीमारी के कारण हो सकता है। कुछ का कहना था कि यह अनुभव अति धार्मिक या पवित्र लोगों को ही होता है। कुछ का कहना था कि यह मेडिकल पेशे को राक्षसी प्रवृत्ति की ओर मोड़ने की कोशिश है। किसी बच्चे को ऐसा अनुभव क्यों नहीं हुआ- केवल इसलिए कि वे वयस्कों के मुकाबले सांस्कृतिक रूप से कम प्रदूषित थे ? कुछ ने कहा कि ये अनुभव संख्यात्मक रूप से इतने कम हैं कि कम से कम किसी वैज्ञानिक सिद्धांत का प्रतिपादन तो इससे नहीं ही किया जा सकता। बहरहाल ये सब आलोचनाएं डॉ. रेमंड को ज्यादा हतोत्साहित नहीं कर पाईं। वे दोगुने जोश से फिर शोध में जुटाए गए, लेकिन इस बार ज्यादा लोगों ने इस विषय को शोध के लायक समझा, डॉ. रेमंड अब कई सवालों का उत्तर देने में सक्षम हैं। उनका कहना है कि कई लोग यह समझ भी नहीं पाते कि मृत्यु या निकट मृत्यु अनुभव में कोई अंतसंबंध भी है। मृत्यु से उसका कुछ लेना देना भी है। इस अनुभव में व्यक्ति अपनी भौतिक काया से निकल कर उसे देख पाने में सक्षम होता है। अपने को इस तरह से देखना बहुत कुछ श्वासन प्रक्रिया के दौरान साक्ष्य भाव से अपने शरीर को देखने जैसा होता है, पर एक बड़ा अंतर यह होता है कि एनडीई अनुभव के दौरान व्यक्ति भ्रम-भय की स्थिति में होता है और कभी-कभी उसे अपनी भौतिक काया की शिनाख्त में भी दिक्कत होती है।
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