21 वीं सदी में डॉक्टर [7]अंतिम : मानवीय टेक्नालॉजी की ज़रूरत : Human Sensitive Tech. is Needed.
- vb0352
- May 5, 2022
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Updated: May 29, 2022
मेगसायसाय पुरस्कार विजेता डॉ पीके सेठी अंतरराष्ट्रीय ख्याति के आर्थोपीडिक सर्जन थे । जयपुर फुट का अविष्कार कर उन्होंने दसियों हजार दिव्यांगों को नया जीवन दिया। जयपुर फुट का निर्माण डॉ सेठी की देखरेख में स्थानीय लोगों द्वारा किया जाता था । प्रस्तुत आलेख सेमिनार में प्रकाशित (2002) उनके अंग्रेजी आलेख ‘डॉक्टर्स इन ट्वेंटीफर्स्ट सेंचुरी’ का अविकल हिंदी रूपांतर है।लगभग डेढ दशक पूर्व लिखा गया यह आलेख आज भी समाज के हर हितधारक तबके को आधुनिक चिकित्सा पद्धति और चिकित्सकों को देखने का एक अलग नजरिया प्रदान करता है । हिंदी रूपांतर: विजय भास्कर।
जब मैंने अवकाश ग्रहण किया तब मैंने सलाह सेवा देनी शुरू की। उस समय मुझे महसूस हुआ कि ज्यादातर मरीज जो सलाह लेने के लिए आते हैं, वे डॉक्टर से बातचीत करना चाहते हैं। यह मेरे लिए एक नया अनुभव था। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के समाज विज्ञानी प्रो मदन ने एक रपट प्रकाशित की थी। रिपोर्ट में बताया गया था कि वहां के ओपीडी में औसतन एक मरीज को लगभग चार घंटे प्रतीक्षा करनी पड़ती है और डॉक्टर उनसे एकाध मिनट ही बात कर पाते हैं। यह तर्क दिया जा सकता है कि एकाध मिनट में आखिर कैसे डॉक्टर मरीज की बीमारी समझ लेंगे। हालांकि यह दूसरी ओर भटकाव होगा।
डॉक्टर द्वारा बोले गये शब्द बीमार के लिए अच्छे होने का दरवाजा हमेशा के लिए बंद भी कर सकते हैं और खोल भी सकते हैं। उनकी बातों के आधार पर ही मरीज अच्छा हो सकता है या हमेशा के लिए निर्भर, भयभीत और जिद्दी बना रह सकता है। सही शब्द मरीज में जान डाल सकते हैं और जीने के लिए उसकी इच्छा शक्ति में इजाफा कर सकते हैं। गलत शब्द स्वस्थ्य होने की प्रक्रिया में बाधा ही नहीं डालते सकते, बल्कि पूरी तरह से इसे प्रक्रिया को उलट सकते हैं और जटिल बना सकते हैं।
रोगों की शिनाख्त सही-सही करने में डॉक्टरों की चिकित्सीय क्षमता का अच्छा परीक्षण हो सकता है। मरीज को यह बता सकना कि उसे अपने मर्ज के बारे में क्या जानना चाहिए और क्या नहीं, यह कुशलता का परिचायक हो सकता है। मरीज वास्तव में सुनिश्चित होना चाहता है। वह चाहता है कि उसकी देखभाल हो, न कि उसे अनदेखा कर दिया जाये। वह चाहता है कि डॉक्टर उसकी बात ध्यान से सुनें। वास्तव में वह यह महसूस करना चाहता है कि उस समय के लिए केवल वही डॉक्टर के दिमाग में है। इस स्थिति में फिजिशियन के पास ही मरीज को स्वस्थ करने का मूलमंत्र रहता है। डॉक्टर का व्यक्तित्व, यदि डॉक्टर चाहे तो लोगों को अच्छा करने में बहुत बड़ी सहायता कर सकता है।
मैं उसे बेहतर तरीके से व्यक्ति नहीं कर सकता जितने बेहतर तरीके से नार्मल पुजीन ने किया था। भारी हृदयाघात से उबरते हुए उन्होंने कहा था ‘मैं प्रार्थना करता हूं कि मेडिकल के छात्र कभी अपने ज्ञान को अपने मरीज के अंतरसंबंद्ध के बीच में नहीं आने दें। मैं प्रार्थना करता हूं कि टेक्नोलॉजी जी से बने सभी उपकरण उन्हें सर्वश्रेष्ठ से चिकित्सा देने से महरूम नहीं कर पायें। मैं प्रार्थना करता हूं कि जब वे मरीज के कमरे में आयें तो यह पहचानें कि मुख्य दूरी दरवाजे से मरीज के बिस्तर तक न होकर मरीज की आंख और उनकी अपनी आंख के बीच है। और यही दो बिंदु हैं जिनसे एक क्षैतिज सीधी रेखा बनती है। और वही डॉक्टर और मरीज के बीच की दूरी कम करती है। चिकित्सा के इतिहास में सबसे पुरानी खोज यही है कि मनुष्य का शरीर अपने आप अपने को निरोग करने की क्षमता रखता है। इस नैसर्गिक क्षमता को विज्ञान और टेक्नोलॉजी के कारण मानव से दूर नहीं कर दिया चाहिए।
मेरा यह विश्वास है कि किसी भी स्वास्थ्य कार्यक्रम का बुनियादी लक्ष्य, एक व्यक्ति को अपने आप अपना ध्यान रखनेवाला बनाने का होना चाहिए। सामान्य लफ्जों में दी गयी सूचनाएं जो बिल्कुल ही आम आदमी की समझ में आ जाये, वे मरीज का ज्यादा भला कर सकती हैं। ये उनलोगों को बता सकती हैं कि वे अपने घर और आसपास के स्वास्थ्य की समस्याओं से कम-से-कम खर्च में कैसे निपटें। वैसे लोग जिनकी थोड़ी बहुत औपचारिक शिक्षा हुई है, उनपर ज्यादा भरोसा किया जाना चाहिए और स्वास्थ्य की बुनियादी जरूरत को समझाने के लिए लोगों को प्रेरित करना चाहिए। परिवार के लोगों को पीड़ादायक समझने के बजाये उन्हें आमंत्रित करना चाहिए कि वे किसी पारिवारिक स्वास्थ्य समस्या पर मिल बैठकर चिंतन करें। यह इस बात की ओर संकेत करता है कि हमारे डॉक्टरों को बेहतर ढंग से हमारी सामाजिक संरचना समझनी चाहिए, जिस सामाजिक और आर्थिक अन्याय के आम जन लोग शिकार हैं उनकी समझ में यह बात आनी चाहिए।
ये कदम, मुझे विश्वास है कि स्वास्थ्य विज्ञान में नये प्रतिमान स्थापित करेंगे। हमें जरूरत है कि एक ऐसे टेक्नोलॉजी की जो लोगों के ज्यादा करीब और अनुकूल हो (प्रोफेसर अमूल्य रेड्डी ने इसे पहले से बता दिया है)। अधिक मानवीय हो, अधिक वैज्ञानिक हो और कम खर्चीली हो जिसे ज्यादा से ज्यादा लोग इससे लाभ उठा सकें। एक ऐसे सुसंगत परिवेश का निर्माण होना चाहिए, जिसमें अंधविश्वास और नीम हकीमी के लिए कोई जगह नहीं हो और जो रोगों से लड़ने में मरीज की स्वतंत्र ढंग से मदद कर सके न कि उसे निर्भर और निष्क्रिय बना दे। किसी भी ज्ञान पिपाशु फिजिशियन को हमेशा ही एक वैज्ञानिक की दृष्टि और मानवीय दृष्टिकोण वाला होना चाहिए। इस व्यवसाय के आलोचकों को इस बात की फिर से जांच कर लेनी चाहिए कि भविष्य की भूमिका क्या हो और इस व्यवसाय से जो मर्यादा गायब हो गयी है उसे फिर से वापस कैसे लाया जाये। हमारे इन तौर तरीकों को उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत लाया जा रहा है और यही इस व्यवसाय के शर्मशार होने के लिए काफी है। हालांकि इस बात पर विवाद हो सकता है लेकिन मैं सोचता हूं कि चिकित्सा की बदली हुई परिस्थितियों के अनुकूल परिवर्तन अब आवश्यक हो गया है और जरूरत इस बात की है कि चिकित्सक रचनात्मक रूप से इस बदली हुई परिस्थिति में अपनी भूमिका सुनिश्चित कर लें।
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